02 November, 2011

उदासी

जब तुम मेरी उमर के हो जाओगे
तब ये बात समझ पाओगे
कि जज्बात कैसे काम करते हैं
कि हालात क्यों ऐसे बन जाते हैं

जब देखोगे कि तुम्हारे ख्वाबों की उम्र हो चली है
जो बड़ी हुईं, जवान हुईं और अब ढलने लगी हैं
जिन्हें बड़े प्यार से संजोया था
इत्मिनान से पाला था, पोसा था
वो सपने अब सफेद होने लगे हैं
उन ख्वाबों की उड़ती रंगत को
तब तुम थाम नहीं पाओगे

जब तुम मेरी उमर के हो जाओगे
तब ये बात समझ पाओगे
कि बेवजह वक्त गुजरना क्या होता है
हंसते हुए जार-जार रोना क्या होता है

तब टूटते सपनों की आवाज सिर्फ तुम्हें सुनाई देगी
तब दरकते ख्वाबों की उघड़ी परतें सिर्फ तुम्हें दिखाई देंगी
उस वक्त अपनी रेस में अकेले ही दौड़ोगे
फिर भी हार जाने के खौफ से जूझते रहोगे
खुद से सवाल पूछोगे, खुद को जवाब देते रहोगे
दिल को तसल्ली दोगे
मगर समझा नहीं पाओगे

जब तुम मेरी उमर के हो जाओगे
तब ये बात समझ पाओगे
कि विद्रोही तेवर कैसे ठंडे पड़ जाते हैं
मेरे जैसे लोग भी दायरे में सिमट जाते हैं

तब पता चलेगा कि जो उलझा हुआ धागा
मुझे विरासत में मिला था
उसे सुलझाने में कैसे उम्र बीत गई
कभी अक्ल लगाई, कभी जोर लगाया
पर उसमें गांठ लगने से रोक नहीं पाया
वो धागा कहीं टूट न जाए
इस डर से हर वक्त खुद को घिरा पाओगे

जब तुम मेरी उमर के हो जाओगे
तब ये बात समझ पाओगे
कि जिम्मेदारियां कैसे जंजीर बन जाती हैं
कि एक मुकम्मल जमीन क्यों नहीं मिल पाती है

जब तुम मेरी उमर के हो जाओगे
तब ये बात समझ पाओगे
जब तुम मेरी उमर के हो जाओगे
तब ये बात समझ पाओगे