एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
वो फरिश्ता, जो किताबों में रहता है
मां की कहानियों में पलता है
पिता के आदर्शों में बढ़ता है
लेकिन दुनिया में उसका कोई वजूद नहीं
ये बात बहुत देर से समझ में आई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
वो कहता रहा, मैं सुनता रहा
उसके बताए रास्तों पर चलता रहा
अब पांव में सिर्फ छाले ही छाले हैं
हर तरफ मुश्किलों के जाले हैं
ये आफत भला क्यों मेरे मन को भायी
एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
कुछ उल्टी रीत है उसकी
कहता है सब्र कर, सब मिलेगा
लगे रहो, आगे बढ़ेगा
अब देखता हूं कि पीछे रह गया मैं
न उसे दुनियादारी आती है, न उसने मुझे सिखाई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
एक दिन मैं यूं ही उदास बैठा था
मन उलझनों के भंवर में लिपटा था
तब वो फरिश्ता मेरे पास आया
मुझे देखा और मुस्कुराया
फिर उसने धीरे से मेरे कान में वो तारीख बताई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा हूं मैं
एक रोज मेरी भी होगी सुनवाई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा हूं मैं
उस रोज मेरी भी होगी सुनवाई
14 December, 2010
01 December, 2010
खुश रहने की दवा
आजकल खुश रहने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
बस चंद रोज पहले से
बदल गया है सबकुछ
अब मैं ज्यादा नहीं सोचता
मन में कोई अपराधबोध नहीं रखता
भूल चुका हूं कल की बातें
कल का कोई हिसाब नहीं रखता
आजकल खुश रहने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
जो चल रहा है, सब ठीक है
अब कहां कोई गम है
हर रोज हंस रहा हूं
यही क्या कम है
कुछ पाने की जल्दी में
अब बिल्कुल नहीं रहता
आजकल बेफिक्र होने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
पहले उठते थे मन में ढेरो सवाल
पीछे पड़ जाते थे अनचाहे ख्याल
हर शख्स को अपनी तराजू पर तौलना
सही-गलत को हर वक्त टटोलना
अब जो बोझ मिले वो कम है
हर बोझ मैं सिर पर नहीं रखता
आजकल तनाव सहने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
बड़ा कमजोर दिल था मेरा
साथ छूटने के डर से घबराता था
कहीं कुछ बिगड़ न जाए
इस डर से खुद को बचाता था
पहले सबकुछ जानते थे मेरे दोस्त
लेकिन खुद के बारे में अब ज्यादा नहीं बोलता
आजकल भावुक न होने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
क्यों सोचना क्या किया मैंने
क्यों पूछना क्या खो दिया मैंने
अभी तो दूर बहुत चलना है
इसलिए हर वक्त खुश रहना है
अब जो उम्मीदें हैं वो खुद से हैं
इसलिए मन बेचैन नहीं रहता
आजकल खुश रहने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
और असर दिखने लगा है
बस चंद रोज पहले से
बदल गया है सबकुछ
अब मैं ज्यादा नहीं सोचता
मन में कोई अपराधबोध नहीं रखता
भूल चुका हूं कल की बातें
कल का कोई हिसाब नहीं रखता
आजकल खुश रहने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
जो चल रहा है, सब ठीक है
अब कहां कोई गम है
हर रोज हंस रहा हूं
यही क्या कम है
कुछ पाने की जल्दी में
अब बिल्कुल नहीं रहता
आजकल बेफिक्र होने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
पहले उठते थे मन में ढेरो सवाल
पीछे पड़ जाते थे अनचाहे ख्याल
हर शख्स को अपनी तराजू पर तौलना
सही-गलत को हर वक्त टटोलना
अब जो बोझ मिले वो कम है
हर बोझ मैं सिर पर नहीं रखता
आजकल तनाव सहने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
बड़ा कमजोर दिल था मेरा
साथ छूटने के डर से घबराता था
कहीं कुछ बिगड़ न जाए
इस डर से खुद को बचाता था
पहले सबकुछ जानते थे मेरे दोस्त
लेकिन खुद के बारे में अब ज्यादा नहीं बोलता
आजकल भावुक न होने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
क्यों सोचना क्या किया मैंने
क्यों पूछना क्या खो दिया मैंने
अभी तो दूर बहुत चलना है
इसलिए हर वक्त खुश रहना है
अब जो उम्मीदें हैं वो खुद से हैं
इसलिए मन बेचैन नहीं रहता
आजकल खुश रहने की दवा खा रहा हूं
और असर दिखने लगा है
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