एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
वो फरिश्ता, जो किताबों में रहता है
मां की कहानियों में पलता है
पिता के आदर्शों में बढ़ता है
लेकिन दुनिया में उसका कोई वजूद नहीं
ये बात बहुत देर से समझ में आई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
वो कहता रहा, मैं सुनता रहा
उसके बताए रास्तों पर चलता रहा
अब पांव में सिर्फ छाले ही छाले हैं
हर तरफ मुश्किलों के जाले हैं
ये आफत भला क्यों मेरे मन को भायी
एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
कुछ उल्टी रीत है उसकी
कहता है सब्र कर, सब मिलेगा
लगे रहो, आगे बढ़ेगा
अब देखता हूं कि पीछे रह गया मैं
न उसे दुनियादारी आती है, न उसने मुझे सिखाई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा था मैं
बड़ी गहरी चोट खाई
एक दिन मैं यूं ही उदास बैठा था
मन उलझनों के भंवर में लिपटा था
तब वो फरिश्ता मेरे पास आया
मुझे देखा और मुस्कुराया
फिर उसने धीरे से मेरे कान में वो तारीख बताई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा हूं मैं
एक रोज मेरी भी होगी सुनवाई
एक फरिश्ते की नकल कर रहा हूं मैं
उस रोज मेरी भी होगी सुनवाई
1 comment:
काफी अच्छा लिखा है.
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सपरिवार आपको नव वर्ष की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं.
नव वर्ष २०११ और एक प्रार्थना
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