आज कुछ यूं चली हवा
पलट गए बीती जिंदगी के पन्ने
खुल गई वो पुरानी दास्तां
फिर से गूंजा कहकहा
जब बिन बात के हम देर तक हंसते थे
बेफिक्री में बेवजह रात भर जागते थे
तब एक कमरे में सिमटी थी जिंदगी
पर दुनिया भर की बातें करते थे
मानो लौट आए वो बीते पल
महसूस हुई वो सिहरन
याद आया वो सुकून
जब फर्श पर पैर पसारे
अधखुली आंखों में रात कटती थी
जब घड़ी हमारे इशारों पर चलती थी
याद है, तब सबकुछ पा लेने की जल्दी थी
एक लंबा सफर तय कर चुके हम
एक-दूसरे से शायद दूर हो गए हम
अब जरा पीछे मुड़कर देखते हैं
खुशियों पर पड़े ताले खोलते हैं
चल एक बार फिर चलते हैं पुरानी तारीख में
चल एक बार फिर दिल खोलकर हंसते हैं
यूं ही बह न जाने दें इस हवा को
इसे मुट्ठी में कैद करते हैं
इसे मुट्ठी में कैद करते हैं
(28 फरवरी 2010)
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